विषकन्या बनाने के पीछे का रहस्य और सच्चाई आपको हैरान कर देगी ! पूरी जानकारी

 


विषकन्या यानि poison girl क्या आज के ज़माने में ये संभव है की किसी इन्सान को विषयुक्त यानि जहरीला बनाया जा सके. पुराने समय में खुबसूरत लडकिया जो राजा महाराजा द्वारा अपने भोग विलास के काम में लायी जाती थी और समय आने पर दूसरे राजाओ को गिफ्ट के तौर पर भी भेजी जाती थी. आइये जानते इतिहास से जुड़ी कुछ विषकन्या की कहानी के बारे में.

इनकी वजह थी आपसी षड़यंत्र अगर दुश्मन आपसे ज्यादा शक्तिशाली है तो उसे लडकिया भेज दो और उसके जरिये उसे मरवा दो. इन खास लडकियों को बचपन से ही विष की मात्रा दी जाती थी ताकि इनके शरीर में विष बन सके. आइये जानते है poison girl से जुड़े secret, mystery, और फैक्ट के बारे में विस्तार से.


विषकन्या और विषपुरुष का जिक्र हम बचपन की कहानियो में सुनते आ रहे है. पुराने टाइम में राजा महाराजा अपने से शक्तिशाली लोगो को छल कपट से अपने रास्ते से हटाने के लिए सुन्दर कन्या उनके पास भेजते थे जिसके रूपजाल में फंस कर वो उसे अपने साथ ले जाते थे.

ये विषकन्या मौका मिलते ही अपना जहर उनके शरीर में पहुंचा देती थी. जिससे किसी को उन पर शक भी नहीं होता था. कैसे एक सुंदर कन्या इतनी जहरीली हो सकती है. विषकन्या क्या होती है कैसे बनती है आइये जानते है ऐसी ही कुछ बातो को.


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विषकन्या क्या होती है

बचपन में हम राजा महाराजाओ की कहानी सुनते तो उसमे एक ऐसी नायिका या नायक के बारे में सुनने को मिलता था जो अकेले ही राजा या किसी बड़े पद के व्यक्ति को आसानी से रास्ते से हटा देते थे. विषकन्या एक ऐसी लड़की होती है जो अपने अंदर poisonको धारण कर रखती है. लम्बे समय से विष की मात्रा धीरे धीरे लेने से उसका शरीर इस विष को धारण करने लायक बन जाता था और फिर वो किसी को भी उस विष के प्रभाव से ख़त्म कर देती थी.

Vishkanya एक साधारण कन्या ही होती थी जो एक long training के बाद विषकन्या बनती थी इन्हे एक weapon के रूप में राजा महाराजा अपने काम के लिए इस्तेमाल करते थे.


विषकन्या कैसे बनती है

विषकन्या बनने का गुण कुछ बच्चो में बचपन से ही होता था. नगरवधू की निगरानी में इन बच्चो को एक ऐसे जहर की डोज दी जाती थी जिसका प्रभाव धीरे धीरे चढ़े. उन बच्चो का शरीर धीमे जहर को धीरे धीरे स्वीकार करने लगता था और फिर उनके अंदर भी जहर बनना शुरू हो जाता था. यहाँ तक की उनके जहर से साँप भी मर सकते थे फिर इंसान की बिसात ही क्या.

vishkanya या vishpurush की पहचान करना बेहद मुश्किल होता था क्यों की ऊपर से कोई इनके और साधारण मनुष्य में फर्क पता नहीं कर सकता था. इस वजह से ये अपने आसपास के लोगो में घुल मिल जाते थे और मौका देखते ही अपने काम को कर वहा से निकल लेते थे. इन्हे सिर्फ जहरीला ही नहीं बनाया जाता था बल्कि हर तरह की ट्रेनिंग दी जाती थी फिर चाहे वो दुसरो को रिझाने के हो या फिर शस्त्र विद्या हो ये हर तरह की कला में माहिर बन जाते थे.


क्यों बनती है विषकन्या :

दरअसल पुराने समय में किसी शत्रु को ख़त्म करने के लिए कई तरीके अपनाये जाते थे जिसमे युद्ध सबसे बड़ा माध्यम था लेकिन तब क्या होगा अगर शत्रु आपसे ज्यादा बलशाली हो और आपके पास उससे लड़ने के लिए सही बल भी न हो. ऐसी स्थिति में विषकन्या या विषपुरुष काम आते थे. ये उन लोगो के साथ मिल जाते थे जिन्हे ख़त्म करना होता था.

अगर पुरुष होता था तो नौकर बन कर राजा की सेवा करता और अगर कन्या होती थी तो राजा का मनोरंजन करती थी जिससे की किसी को कोई शक भी नहीं होता था. सही मौके की तलाश में रहते इन लोगो को बस एक मौका चाहिए जिससे ये चूकते नहीं थे. एक तरह से ये राजा महाराजा के गुप्त हथियार का एक हिस्सा ही थे.


जन्म से जुड़ा है विषकन्या बनने का राज

कुछ बच्चो के जन्म के समय जब लोगो को पता चलता की शादी के वक़्त जिससे इस बच्चे की शादी होगी वो मर जाएगा तो लोग ये सोच कर की किसी की जिंदगी ख़त्म करने की बजाय इसे शाही सेवा में लगा दिया जाए.

यही सोच कर लोगो अपने बच्चे राजा को सौंप देते थे जो नगरवधू के पास रहकर हर तरह की कला सीखते. साथ ही इन्हे जहरीला भी बनाया जाता था. इसके लिए उनके शरीर में ऐसे जहर को पहुँचाया जाता था जो कम जहरीला हो.

धीरे धीरे जब इस जहर को शरीर एक्सेप्ट कर लेता था तब जहर की मात्रा को बढ़ा दिया जाता था इससे बच्चे का शरीर इतना जहरीला हो जाता था की उसकी लार और नाख़ून काटने से भी दूसरे के शरीर में जहर फ़ैल जाता था और वो मर जाता था.

कल्किपुराण के अनुसार उस काल में जब किसी घर में पंडित किसी बच्चे को विषकन्या योग से पीड़ित बता दिया करते थे तो उस बच्चे को परिवार से अलग कर राजा की सेवा में भेज दिया जाता था.


विषकन्या की ऐतिहासिक कहानी

इतिहास के अनुसार कौटिल्य शास्त्र के रचियता चाणक्य के सन्दर्भ में कहा जाता है कि उन्होंने कई बार मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य के प्राणों की रक्षा की. जिनमें से कुछ हमले विषकन्याओं का प्रयोग करके भी किये गये थे. उन्हीं में से एक प्रसंग इस प्रकार है

एक बार की बात है. नन्द वंश के तात्कालीन सम्राट धनानन्द के मंत्री ने एक षड्यन्त्र किया. उसने छलपूर्वक विजय अभियान से लौटकर आये हुए चन्द्रगुप्त मौर्य के स्वागत में एक विषकन्या को भेजा. किन्तु विषकन्या जैसे ही चन्द्रगुप्त के रथ के सामने आई,

चाणक्य ने उसे रोक दिया और चन्द्रगुप्त के साथी राजा प्रवर्तक से कहा कि “ इस रूपवती स्त्री को तुम स्वीकार करो.” राजा प्रवर्तक ने विषकन्या को स्वीकार कर लिया.

राजा प्रवर्तक युद्ध में चन्द्रगुप्त मौर्य का सहयोगी था. अतः राज्य के नीति नियमों के अनुसार उसे आधे राज्य का स्वामी बनाया जाना था. किन्तु जैसे ही उसने विषकन्या का हाथ पकड़ा, विषकन्या के हाथों में लगा पसीना उसे लग गया.

जिससे प्रवर्तक के शरीर में विष फ़ैल गया और वह बीमार पड़ गया. उसने मित्र चन्द्रगुप्त मौर्य को मदद के लिए बुला भेजा. चन्द्रगुप्त ने राज्य के सभी वैद्यों को उसकी चिकित्सा करने के लिए नियुक्त कर दिया. किन्तु जहर शरीर में इतना फ़ैल चूका था कि उसे नहीं बचाया जा सका और अंततः उसकी मृत्यु हो गई.

इस घटना से कुछ इतिहासकार यह मतलब निकालते है कि चाणक्य ने जानबूझकर विषकन्या को राजा प्रवर्तक के पास भेजा था. उनका मानना है कि चन्द्रगुप्त की प्राण रक्षा के लिए राजा प्रवर्तक का मरना जरुरी था.


राजनैतिक नियम के अनुसार जब किसी राज्य को दो राजाओं में आधा – आधा बांटा जाता है तो एक न एक दिन उनमें आपस में युद्ध अवश्य होता है. किन्तु यह महज एक अनुमान मात्र है.

इस घटना के बाद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को भविष्य में विषकन्या और विष के प्रभाव से बचाने के लिए भोजन के साथ अल्प मात्रा में जहर देना शुरू कर दिया तथा दिन प्रतिदिन उसके आहार में विष की मात्रा बढ़ाते रहने की व्यवस्था की. ताकि चन्द्रगुप्त भविष्य में जाने – अनजाने में भी किसी विषकन्या के संपर्क में आये तो उससे सुरक्षित रह सके. इस प्रकार चन्द्रगुप्त विष के प्रभाव से पुर्णतः सुरक्षित था.


एक दिन की बात है, जब सम्राट चन्द्रगुप्त भोजन कर रहे थे. तभी वहाँ उनकी गर्भवती महारानी का आगमन हुआ. महाराज को भोजन करते देख महारानी की भी इच्छा हुई कि महाराज के साथ भोजन करें. अपनी इच्छा के अनुरूप महारानी ने चन्द्रगुप्त की थाली में से भोजन का एक कौर उठाकर खा लिया. भोजन में मिले हुए विष के प्रभाव से महारानी कुछ ही क्षणों में मूर्छित हो गई.

राजा चन्द्रगुप्त ने राजवैद्यों को बुलाया और महारानी के अचानक मूर्छित होने की बात बताई. किन्तु कोई भी महारानी के मूर्छित होने का वास्तविक कारण नहीं जानता था. तभी यह बात चाणक्य को पता चली. उन्हें पता था कि रानी मूर्छित क्यों हुई. उन्होंने तुरंत शल्य – चिकित्सकों को बुलाकर रानी के गर्भ में स्थित बालक को निकलवा लिया. बालक तो बच गया लेकिन महारानी की मृत्यु हो गई.

महारानी के विषैला भोजन करने से बालक पर कोई खास असर नहीं हुआ लेकिन उसके ललाट पर एक नीला निशान बन गया था. माथे पर उभरे नीले निशान के कारण ही चन्द्रगुप्त ने उसका नाम बिन्दुसार रख दिया. आगे चलकर यही बिन्दुसार राज्य विस्तार और जैन धर्म के प्रचार के लिए प्रसिद्ध हुआ

इस प्रकार विषकन्याओं द्वारा छलपूर्वक शत्रु राजाओं की हत्या की जाती थी तथा राजाओं के शुभचिंतकों द्वारा उसकी सुरक्षा करने के लिए उन्हें भी प्रतिदिन अल्प मात्रा में विष देकर विषपुरुष बना दिया जाता था. ताकि विषकन्या का उन पर कोई खास प्रभाव न पड़े.


विषकन्या और महाराज का आपसी स्वार्थ

विषकन्या हो या विषपुरुष दोनों का ही राजा अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते थे. इसके जरिये वो उन लोगो को आसानी से ख़त्म करवा देते थे जो उनसे ज्यादा शक्तिशाली थे और सीधे टकराव नहीं कर सकते थे.

विषकन्या या विषपुरुष के इस्तेमाल से वो आसानी से दुसरो को अपने रास्ते से हटवा देते थे और किसी को शक भी नहीं होता था की कोई किसी को मरवाने वाला है.


उपहार में भेजी जाती थी विषकन्या

चन्द्रगुप्त मौर्य काल ( 321 – 185 बी सी ) में लिखे गए एक महाग्रंथ “मुद्राराक्षस” में विषकन्या का जिक्र है जिसे नगरवधू राजा के लिए खुद तैयार करती थी. ये नगरवधू शाही वेश्या होती थी. राजा महाराजा के निजी कार्यो की पूर्ति के लिए ये सुन्दर कन्याओ को विषकन्या बनाती थी.

एक अन्य जगह कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णन किया गया है की चन्द्रगुप्त मौर्य के दुश्मन और तत्कालीन राजा नन्द के महामंत्री अमात्य राक्षस ने छल से नगरवधू की तरफ से भेजी गई भेंट को राज-दरबार में पेश किया गया.

चन्द्रगुप्त उपहार में इस सुंदरी को पाकर खुश हो गए, लेकिन तभी चाणक्य ने कहा की चन्द्रगुप्त के बजाय ये उपहार उनके मित्र राजा पर्वतक को दिया जाना चाहिए क्यों की उन्होंने संकट के समाय राजा की मदद की.

जब राजा पर्वतक रहस्यमयी तरीके से दूसरे दिन मरे मिले और कन्या गायब तक चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को ये राज जाहिर किया की ये विषकन्या थी जो उसे मारने के लिए भेजी गई थी.


आज के टाइम विषकन्याओ का इस्तेमाल

आज के दौर में विषकन्या तो नहीं है लेकिन उनके जैसे कर्म करने वाले अनेको मिल जायेंगे. विषकन्या राजा के प्रति वफादार होती थी और दुसरो को राजा के इशारे पर बहला फुसला कर तैयार करती थी. आज के दौर में भी कुछ ऐसा ही है.

पाकिस्तान और चीन ये देश पड़ोसी देशो की जासूसी करने के लिए खूबसूरत लड़कियों को उनके पास उनसे नजदीकियां बढ़ाने के लिए प्रेरित करते है. और फिर उनसे उनके देश के सभी गुप्त राज खुलवा लेते थे.

इसे honey trap कहते है. क्यों की honey मतलब खूबसूरत और trap मतलब जाल. खूबसूरती का जाल बिछा कर कुछ देश अपनी लड़कियों को दूसरे देशो में भेज देते है और इन्हे हर तरह की ट्रेनिंग देकर इस लायक बनाते है की ये हर तरह की परिस्थिति में खुद को संभाल सके.


बाबा राम रहीम की विषकन्या

सही सुना आपने जाँच में जब इस बात का खुलासा हुआ की हनीप्रीत खूबसूरत लड़कियों को राम रहीम के लिए तैयार करती थी इसके अलावा वो सोशल मीडिया के माध्यम से स्पेशल नाईट के लिए लोगो को बुलाती थी जिसमे राम रहीम अपने लिए लड़की का चुनाव करता था.

हनी-प्रीत भी राम राम की विषकन्या से कम नहीं थी. जिस लड़की पर राम रहीम का दिल आ जाता था वो उसे किसी भी तरह तैयार कर लेती थी.

हनीप्रीत राम रहीम की वफादार थी इसलिए वो उसके हर शौक और राज से वाकिफ थी और हो सकता हो हनीप्रीत के गायब होने का राज यही हो. खैर ये बात तो है की आज भी विषकन्या लोगो के स्वार्थ के लिए काम कर रही है फर्क सिर्फ इतना है की आज के दौर में विषकन्या जहरीली नहीं उनके काम जहरीले है.

लोग भी अजीब है जो अब हनीप्रीत को गूगल पर सर्च कर रहे है और लिख रहे है की हनीप्रीत कित मिलगी. खैर हनीप्रीत तो गई.

दोस्तों विषकन्या पर लिखी गई आज की पोस्ट अलग अलग आंकड़ों पर आधारित है इसलिए अगर आपके पास भी इससे जुडी कोई दिलचस्प जानकारी है तो आप इसे हमारे साथ शेयर कर सकते है. पोस्ट अच्छी लगे तो इसे शेयर करना ना भूले।

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