व्यवसायिक अर्थशास्त्र की परिभाषा, प्रकृति और प्रमुख विशेषताएं

 व्यावसायिक अर्थशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ ( Meaning and Definitions of Business Economics)


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व्यवसाय प्रबन्ध में अर्थशास्त्र का उपयोग ही व्यावसायिक अर्थशास्त्र कहलाता है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र को परम्परागत अर्थशास्त्र के एक भाग के रूप में जाना जाता है। सामान्य अर्थशास्त्र के अन्तर्गत माँग, मूल्य, पूर्ति एवं उपयोगिता की व्याख्या की जाती है।

जबकि व्यावसायिक अर्थशास्त्र इन व्याख्याओं को व्यापार प्रबन्ध में लागू करता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि किसी व्यापारिक संस्था की समस्याओं का समाधान करने हेतु आर्थिक सिद्धान्तों का प्रयोग करना एवं उन्हीं सिद्धान्तों के आधार पर उचित निर्णय लेकर भविष्य की योजनाओं को सफल बनाना ही व्यावसायिक अर्थशास्त्र कहलाता है। 

वर्तमान में इसे प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र, उपक्रम का अर्थशास्त्र, प्रबन्ध का विज्ञान, निर्णय की कला एवं फर्म का सिद्धान्त आदि कहा जाता है।

 व्यावसायिक अर्थशास्त्र को कुछ प्रमुख विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है- "प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र के उस अंग को सम्मिलित करता है जो कि फर्म के सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है, इस सिद्धान्त समूह से व्यवसायी को निर्णय लेने में पर्याप्त मदद मिलती है।" - मैकनायर तथा मेरीयाम 

"प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र निर्णय लेने में प्रयोग किया जाने वाला अर्थशास्त्र है। यह निरपेक्ष सिद्धान्त एवं प्रबन्धकीय व्यवहार के मध्य खाई पाटने वाली अर्थशास्त्र की एक विशेष शाखा है।' - हैन्स, मोट एवं पाल 

"प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धान्तों का व्यवसाय व्यवहार के साथ एकीकरण है, जिसका उद्देश्य प्रबन्ध द्वारा निर्णयन तथा भावी नियोजन को सरल बनाना है।'

(व्यवसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति)

(Nature of Business Economics)


व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति को जानने के लिए यह जानना आवश्यक है कि यह विज्ञान है। यदि यह विज्ञान है तो यह वास्तविक विज्ञान है।

वास्तविक विज्ञान : किसी घटना के कारण एवं परिणाम का अध्ययन विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है तथा इस तथ्य की भी खोज की जाती है कि वह घटना "क्या है ?

" इस प्रकार किसी भी ज्ञान के अध्ययन को विज्ञान कहते हैं, अर्थात् विज्ञान का तात्पर्य किसी भी घटना के क्रम का विश्लेषण करना है। 

जब व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किसी फर्म के उत्पाद की लागत, लाभ, माँग एवं भावी प्रगति की सम्भावनाओं आदि का क्रम से विश्लेषण करने के पश्चात् निष्कर्ष निकाला जाता है कि फर्म की आर्थिक स्थिति क्या है? 

क्या वह फर्म अनिश्चितता तथा प्रतिस्पर्धा के वातावरण में अपनी पूँजी से अपेक्षित लाभ देय क्षमता रखती है ? यदि नहीं तो क्यों ? इसका पूरा समाधान व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत किया जाता है, इसीलिए इसे वास्तविक विज्ञान की संज्ञा प्रदान की जा सकती है। 

आदर्श विज्ञान : एक वैज्ञानिक द्वारा “क्या" का उत्तर देने पर उसकी वास्तविकता की पुष्टि तो हो जाती है, किन्तु किसी समस्या विशेष का समाधान नहीं होता है। 

जैसे, यदि हम विश्लेषण के माध्यम से यह जान लें कि किसी फर्म की लाभ देय क्षमता क्या है तो इससे किसी समस्या का समाधान नहीं होता है। समस्या का समाधान तो तब होता है जब हम यह पता लगा लें कि लाभ क्षमता को कैसे बढ़ाया जा सकता है। 

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि व्यावसायिक संस्था के जिन व्यावहारिक पहलुओं के विश्लेषण के आधार पर भविष्य अनुमान तथा भावी योजनाओं को कार्यान्वित किया जा सके वह अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। 

व्यावसायिक सफलता के लिए पूर्वानुमान अति आवश्यक होता है क्योंकि इसी के आधार पर नीतियों का निर्धारण एवं कार्यान्वयन होता है तथा इसी आधार पर योजनाओं का भी निर्माण किया जाता है। एक संस्था की व्यावसायिक सफलता के लिए भूत व वर्तमान की अपेक्षा भविष्य अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। 

भविष्य का निर्माण भूत तथा वर्तमान के अनुभवों के आधार पर ही होता है। अतः संस्था का भूत व वर्तमान आवश्यक तो होता है, किन्तु उससे किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। जब हम किसी संस्था के भूत तथा वर्तमान का अध्ययन करते हैं तो उस संस्था की स्थिति का तो अनुमान लग जाता है, किन्तु वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं होती है। 

"क्या है" तथ्य से वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं होती है बल्कि "क्या होना चाहिए" तथ्य से होती है। इसका अन्तर निकालने के लिए आदर्श विज्ञान की आवश्यकता हो है। अतः व्यावसायिक अर्थशास्त्र को आदर्श विज्ञान भी कहा जा सकता है उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि व्यावसायिक अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-सा आदर्श विज्ञान भी है।

 कला : किसी कार्य इतने अच्छे ढंग से करना जिससे कि उस कार्य की कुशलता अधिकत हो, कला कहलाती है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि अपेक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उपलब्ध साधनों का सर्वोत्तम ढंग से उपयोग किया जाना ही कला है। 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र प्रबन्धक को अने विकल्पों में से सही विकल्प चुनने में मदद करता है अतः यह भी एक कला है। सही विकल्प का चयन सही निर्णयन कहलाता है। 

एक संस्था के सीमित साधनों के अनेकों वैकल्पिक उपयोग होते हैं, जिनमें से प्रबन्धक को किसी एक का चयन करना होता है। संस्था का भविष्य निश्चित न होने के कारण यह प्रक्रि अत्यन्त जटिल होती है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र का यह 'कला' तत्व ही अनिश्चितता के वातावरण में निर्ण लेने में प्रबन्ध की सहायता प्रदान करता है। 

संस्था की लाभदायकता उत्पादन में वृद्धि करके, मूल्य में वृद्धि करके अथवा लागत में कमी करके अथवा अन्य किसी प्रकार से वृद्धि की जा सकती है, इसका निर्णय व्यावसायिक अर्थशास्त्र का 'कला' पक्ष ही कर सकता है। इस प्रकार व्यावसायिक अर्थशास्त्र को कला कहा जा सकता है। 


 व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रमुख विशेषतायें
(Main Characteristics of Business Economics)

व्यावसायिक अर्थशास की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

1. विचारशील दृष्टिकोण (Pragmatic Approach) : व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विचारशील दृष्टिकोण अपनाया गया है तथा आर्थिक सिद्धान्तों के जटिल एवं निरपेक्ष पक्षों की अवहेलना की गयीं है, किन्तु निर्णय लेते समय व्यावहारिक पहलुओं पर जोर दिया गया है जो कि नीति निर्धारण में अत्यन्त सहायक है। 

2. स्वभाव (Nature) : व्यावसायिक अर्थशास्त्र का सूक्ष्म अर्थशास्त्रीय स्वभाव होता है। इसके अन्तर्गत एक फर्म के उत्पादन की मात्रा, माँग का पूर्वानुमान लगाना, लाभ नियोजन, लागत तथा मूल्य का निर्धारण एवं पूँजी का प्रवन्ध आदि समस्याओं का अध्ययन किया जाता है अर्थात् इसमें केवल व्यक्तिगत फर्म की समस्याओं का अध्ययन होता है। 
 
3. निर्देशात्मक स्वभाव (Prescriptive Nature) : व्यावसायिक अर्थशास्त्र का स्वभाव निर्देशात्मक होता है न कि वर्णनात्मक, अर्थात् यह सिद्धान्तों का वर्णन नहीं करता है बल्कि इस बात का अध्ययन करता है कि सिद्धान्तों तथा आर्थिक विश्लेषणों का प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है। 
 
4. आदर्श अर्थशास्त्र (Normative Economics) : व्यावसायिक अर्थशास्त्र वास्तविक कम व आदर्श अधिक है। यह 'क्या है' की अपेक्षा 'क्या होना चाहिए' पर अधिक बल देता है अर्थात् व्यापार का लाभ क्या है की अपेक्षा इस बात पर अधिक बल देता है कि व्यापार का लाभ अधिक कैसे किया जा सकता है। 

5. अर्थशास्त्र के व्यापक अध्ययन से सम्बन्धित (Related to the study of Macro Economics): किसी फर्म के सभी निर्णय उसकी परिसीमा के अन्दर ही नहीं लिए जा सकते हैं अतः एक व्यावसायिक प्रबन्ध के लिए व्यापक अर्थशास का ज्ञान होना भी आवश्यक है। 

व्यापार की क्रियाओं पर बाहरी शक्तियों का भी प्रभाव पड़ता है जैसे - प्रतिस्पर्धा, व्यापार चक्र, मूल्य नीति, करारोपण, सरकारी नीतियाँ, मौद्रिक नीति, श्रम आन्दोलन एवं विदेशी व्यापार की प्रवृत्ति आदि। यही कारण है कि व्यावसायिक अर्थशास्त्र का अध्ययन उपयोगी है और इन्हीं सिद्धान्तों को आधार मानकर निर्णय लिये जाते हैं।

6. आर्थिक सिद्धान्तों एवं व्यावसायिक व्यवहार का समन्वय (Integration of Economic Theory and Business Practice) : व्यावसायिक अर्थशास्त्र, आर्थिक सिद्धान्त एवं व्यवहार का समन्वय करता है जिससे अनिश्चित जोखिमें कम होती हैं। 

7. फर्म के सिद्धान्त के अध्ययन से सम्बन्धित (Related the Study of the Theory of Firm): व्यावसायिक अर्थशास्त्र का विशेष रूप से सम्बन्ध फर्म के सिद्धान्त के अध्ययन से है, जिसमें लागत, आगम का विश्लेषण, माँग पूर्ति, पूँजी बजटन, विनियोग की लाभदेयता, उत्पादन मात्रा तथा मूल्य निर्धारण का अध्ययन किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें वितरण के लाभ सिद्धान्त का भी अध्ययन होता है। 

8. प्रबन्धकीय स्तर पर निर्णय (Decision at Managerial Level) - व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अध्ययन का सम्बन्ध नीतियों के निर्धारण से होता है, अतः प्रबन्ध से इसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। प्रबन्ध द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है और प्रशासन द्वारा उनको कार्यरूप प्रदान किया जाता है। इस प्रकार व्यावसायिक अर्थशास्त्र में निर्णय लेने का कार्य प्रबन्धकीय स्तर का होता है।

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