उसैन बोल्ट कैसे बने चीते से भी तेज दौड़ने वाले व्यक्ति

 

सिर्फ 9.58 सेकेंड में 100 मीटर, महज 19.19 सेकेंड में 200 मीटर, लगातार तीन ओलिंपिक में 100 और 200 मीटर रेस में गोल्ड मेडल, वर्ल्ड चैंपियनशिप में रिकॉर्ड 11 गोल्ड मेडल…वो इंसान नहीं, वो महामानव है. बात हो रही है दुनिया के सबसे तेज धावक उसेन बोल्ट (Usain Bolt) की, जो रेसिंग ट्रैक पर दौड़ते नहीं उड़ते हैं. यूसेन बोल्ट ने अपने करियर में कई ऐसे रिकॉर्ड बनाए हैं जिन्हें तोड़ना लगभग नामुमकिन है. वो दुनिया के सबसे महान एथलीट हैं, उनके जैसा धावक इतिहास में कभी पैदा नहीं हुआ. दिलचस्प बात ये है कि यूसेन बोल्ट कभी धावक बनना ही नहीं चाहते थे, वो तो क्रिकेट खेलना चाहते थे, जो कि उनका पहला प्यार था. लेकिन फिर कैसे यूसेन बोल्ट एक धावक बन गए? किस एक घटना ने यूसेन बोल्ट को धावक बनने पर मजबूर कर दिया. आइए आपको बताते हैं यूसेन बोल्ट की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट.

जमैका के उसैन बोल्ट का सफर यहीं से शुरू हुआ. बोल्ट ने मई, 2008 में 9.72 सेकंड का समय निकाला तो 2 महीने बाद 9.68 सेकंड के साथ अपना ही रिकार्ड तोड़ दिया. इसके बाद बोल्ट ने 2009 में 9.58 सेकंड का समय निकाला, जो आज तक वर्ल्ड रिकॉर्ड के तौर पर दर्ज है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बोल्ट के साथ रेस में कोई उसके आसपास का एथलीट दौड़ता तो उन्हें अपना रिकार्ड सुधारने की प्रेरणा मिलती और वे इस रिकार्ड को 9.40 सेकंड से भी नीचे तक ले जाने की क्षमता रखते थे.

अपनी क्लास में सबसे धीमा दौड़ते थे बोल्ट
इस बात का यकीन कर पाना मुश्किल है लेकिन ये बात सच है कि जब यूसेन बोल्ट (Usain Bolt) छोटे थे तो वो अपनी क्लास में सबसे धीमे रनर माने जाते थे. बोल्ट को हारना नापसंद था इसलिए वो कभी किसी रेस में हिस्सा नहीं लेते थे. उन्होंने रेस नहीं क्रिकेट को चुना, जिसमें उन्हें बहुत मजा आता था और उसमें ज्यादा दौड़ना भी नहीं पड़ता था. यूसेन बोल्ट एक अव्वल दर्जे के गेंदबाज थे और उन्हें विकेट लेना बेहद पसंद था. वो अपने दोस्तों के साथ टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलते थे.

यूसेन बोल्ट की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट
यूसेन बोल्ट (Usain Bolt) एक दिन अपने दोस्तों के साथ बैठे हुए थे. उनकी अपने दोस्त रिकार्डो गेडेस से सबसे तेज धावक पर बहस हो रही थी. ये पूरा वाकया वहां के स्थानीय पादरी रेवरेंड नजेंट देख रहे थे. बहस हो ही रही थी कि पादरी रेवरेंड उनके पास पहुंचे और कहा कि सबसे तेज धावक कौन है इसका फैसला एक रेस से ही कर लेना चाहिए. यूसेन बोल्ट इसके लिए तैयार नहीं थे, लेकिन पादरी नजेंट ने एक शर्त भी उसमें रख दी. उन्होंने कहा कि जो इस रेस को जीतेगा उसे मुफ्त में लंच मिलेगा. बस फिर क्या था बोल्ट इसके लिए तैयार हो गए. उनकी नजर पादरी के लंच पर थी. रेस हुई और बोल्ट ने रिकार्डो गेडेस को हराकर लंच जीत लिया. पादरी बोल्ट को दौड़ता देख हैरान रह गए क्योंकि रिकार्डो गेडेस वहां के सबसे अच्छे धावकों में से एक थे और बोल्ट ने उन्हें बड़ी आसानी से हरा दिया. पादरी नजेंट ने यूसेन बोल्ट को धावक बनने के लिए प्रेरित करते हुए कहा- अगर तुम रिकार्डो गेडेस को हरा सकते हो, तो तुम दुनिया में किसी को भी हरा सकते हो. बस इस दिन से यूसेन बोल्ट का ध्यान धावक बनने पर लग गया और एथेलेटिक्स की दुनिया को एक नया सितारा मिला.

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जमैका के धावक यूसैन बोल्ट की अतुलनीय रफ़्तार का रहस्य अब समझा जा सकता है. इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक गणितीय मॉडल विकसित किया है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि यूसैन बोल्ट के शरीर की पांच फ़ुट, छह इंच की लंबाई और उनकी शक्ति और ऊर्जा का समन्वय उनको सबसे तेज़ रफ़्तार वाला बेजोड़ धावक बनाता है.

यूसैन बोल्ट ने 2009 की बर्लिन विश्व चैंपियशिप में 100 मीटर की दूरी 9.58 सेकेंड में पूरा करने का रिकॉर्ड बनाया था जिसे आज तक कोई धावक नहीं तोड़ पाया.

रफ़्तार का रहस्य

‘द यूरोपियन जर्नल ऑफ फिजिक्स’ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार एक ख़ास मॉडल के सहारे यूसैन की तेज़ रफ़्तार का रहस्य खोजा जा सकता है.

इसके अनुसार बोल्ट ने 9.58 सेकेंड में 100 मीटर का लक्ष्य अपनी रफ़्तार को 12.2 मीटर प्रति सेकेंड तक पहुंचाकर हासिल किया. यानी बोल्ट 27 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रहे थे.

बोल्ट की रफ़्तार का विश्लेषण करने वाली टीम ने पाया कि बोल्ट में सर्वाधिक शक्ति तब पैदा हुई जब वह दौड़ में आधी रफ़्तार पर एक मीटर की दूरी सेकेंड से भी कम समय में तय कर रहे थे.

इस प्रदर्शन से रफ़्तार में आने वाली बाधा का तात्कालिक प्रभाव देखा जा सकता है, जहां हवा का प्रतिरोध गतिशील वस्तुओं की रफ़्तार को धीमा कर देता है.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

जार्ज हेरनांदेज़ कहते हैं, ”आजकल रिकॉर्ड तोड़ना काफी कठिन हो गया है. यहां तक कि सेकेंड के सौवें हिस्से से भी रिकॉर्ड तोड़ना बहुत बड़ी बात है. धावक की बढ़ती रफ़्तार के साथ विपरीत दिशा से लगने वाले अवरोध में तेज़ी से बढ़ोत्तरी होती है. इस कारण धावकों को रिकॉर्ड बनाने या तोड़ने के लिए अवरोध से निपटने में सारी ताकत झोंकनी पड़ती है. ऐसा पृथ्वी के वातावरण की ‘भौतिक बाधाओं’ के कारण होता है.”

”अगर बोल्ट किसी कम घने वातावरण वाले ग्रह पर दौड़ रहे होते, तो उनके रिकॉर्ड तुलनात्मक रूप से काफी बेहतर होते. बोल्ट की स्थिति के सटीक अध्ययन और दौड़ के दौरान उनकी गति ने धावकों पर अवरोध के असर का अध्ययन करने का शानदार मौका दिया है.”

हेरनांदेज़ कहते हैं कि अगर भविष्य में और आंकड़े उपलब्ध होते हैं, तो देखना दिलचस्प होगा कि एक एथलीट की कौन सी बात बाकियों से विशिष्ट बनाती है.

इलेक्ट्रॉनिक टाइमिंग का इस्तेमाल 1968 से हो रहा है.बर्लिन में जब बोल्ट दौड़े और जो समय दर्ज हुआ वो 1968 से लेकर तब तक के रिकॉर्ड में सबसे बड़ा सुधार था.

1912 से 1976 तक, 1977 से आज तक

100 मीटर रेस में वर्ल्ड रिकॉर्ड के सफर को 2 समयकाल में बांटा जाता है. पहला समय है 1912 से 1976 तक का. ये वो समय था, जब समय को मैनुअल स्टॉप वाच की मदद से रिकॉर्ड किया जाता था. हालांकि इसमें कुछ सेकंड की गलती की गुंजाइश होती थी, इस कारण उस दौर में बने रिकार्ड को विशेषज्ञ ज्यादा तवज्जो नहीं देते. 1975 में विश्व एथलेटिक्स संघ (IAF) ने इलेक्ट्रॉनिक स्टॉप वाच का इस्तेमाल चालू कर दिया था, जिससे 2 एथलीटों के बीच माइक्रो सेकंड तक के समय के अंतर को भी पकड़ना आसान हो गया था. इस दौर के रिकॉर्ड को ही असली पैमाना माना जाता है.

10.6 सेकंड से चालू हुआ था सफर

भले ही पहले आधिकारिक ओलंपिक खेलों का आयोजन साल 1896 में चालू हो गया था, लेकिन इसमें आयोजित स्पर्धाओं में कौन किस गति से दौड़ रहा है, इसके रिकार्ड को रखने का कोई तरीका नहीं बनाया गया था. इंसानी गति का समय के हिसाब से दर्ज करने का सिलसिला सबसे पहली बार 1912 में शुरू किया गया था. पहली बार वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज किया गया था स्वीडन के स्टॉकहोम में और पहले वर्ल्ड रिकार्डधारी एथलीट बने थे अमेरिका के डोनाल्ड लिपिनकोट. लिपिनकोट ने 6 जुलाई, 1912 को यह कारनामा किया था.

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